पूरी दुनिया में सिर्फ मथुरा और वृंदावन में खेली जाने वाली अनोखी और खास लड्डू होली की कहानी बहुत रोचक है. ऐसी मान्यता है कि इस होली की शुरुआत श्रीकृष्ण के बालपन से हुई थी. मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण और नंदगांव के सखाओं ने बरसाना में होली खेलने का न्योता स्वीकार कर लिया था. न्योता मिलने की खुशी में नंदगांव के सखाओं ने एक दूसरे को लड्डू खिलाकर मुंह मीठा किया था. इस दौरान कुछ सखाओं ने लड्डू से होली भी खेली थी. इसके बाद से ही लड्डू होली हर साल धूमधाम से मनाई जाती है.
चार मार्च को राधारानी के गांव बरसाना में लठामार होली खेली जाएगी। यहां होली खेलने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के नंदगांव से हुरियारे आएंगे। उनके स्वागत के लिए बरसाना आतुर है। कस्बे के विभिन्न मोहल्लों में रंगीली होली के दिन निकाली जाने वाली चौपाई के लिए लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा है। बुजुर्गों से युवा लड़के चौपाई गायन सीख रहे हैं तो जगह-जगह नगाड़े भी सजाए जा रहे हैं।
ठीक 1 दिन पहले नंदगांव के होरियारे, राधा रानी के गाँव बरसाना जाते हैं और वहां पर गोपियाँ इन होरियारों पर लाठी से वार करती हैं जिसे होरियारे अपनी ढाल से बचाते हैं ... और इसके एक दिन बाद यही बरसाने के लोग भगवान कृष्ण के गाँव , नंदगांव पहुँचते हैं .... जहाँ पर एक बार फिर लठमार होली होती है
राधारानी की जन्मस्थली गांव रावल में लठामार होली का आयोजन 05 मार्च को होगा। इसी दिन भजन, रसिया गायन, व्यंजन अर्पण आदि कार्यक्रम होंगे।मंदिर के मुखिया ललित मोहन कल्ला ने बताया कि 05 मार्च को प्रात: 6 बजे मंगला आरती-दर्शन होंगे। बाल भोग उपरांत श्रृंगार के दर्शन प्रात: 9 बजे, राजभोग दर्शन 12.30 बजे, रसिया, भजन गायन अपरान्ह 2.30 बजे से, शाम 3 बजे से 6 बजे तक लट्ठमार होली, रात्रि 9 बजे शयन आरती आदि कार्यक्रम होंगे। होली उत्सव की तैयारियां शुरू हो गईं हैं
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत होने वाली फूलों की होली को इस बार और अधिक वृहद रूप दिया जा रहा है। इस बार फूलों की होली में 21 मन फूलों का उपयोग होगा जिसमें अधिकांशत: गेंदा व गुलाब का इस्तेमाल किया जाएगा। इन फूलों की पंखुड़ियों से भक्तों पर वर्षा की जाएगी। फूलों के साथ भगवान श्रीकृष्ण व राधा के स्वरूप होली खेलेंगे और फूलों को भक्तों पर लुटाया जाएगा।
बृज की होली प्रसिद्ध है लेकिन बांके बिहारी मंदिर में होने वाली होली का कुछ अलग ही आनंद है।वृंदावन में स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर की होली पूरी दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां होली खेलने के लिए सिर्फ देश से नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं
फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी को गोकुल में प्रसिद्ध छड़ीमार होली खेली जाती है. यहां गोपियों के हाथ में लट्ठ नहीं, बल्कि छड़ी होती है और होली खेलने आए कान्हाओं पर गोपियां छड़ी बरसाती हैं. यहां लाठी की जगह छड़ी से होली खेली जाती है. मान्यता है कि बालकृष्ण को लाठी से कहीं चोट ना लग जाए, इसलिए यहां लाठी की जगह छड़ी से होली खेलने की परंपरा है.
उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के गांव फालेन में प्रतिवर्ष अनूठी होली का आयोजन होता है। इसमें होलिकादहन के समय एक पुरोहित, जिसे पंडा कहा जाता है, नंगे पांव जलती हुई होली के बीच से निकलता हुआ एक कुंड में कूद जाता है।
श्री माथुर चतुर्वेदी परिषद के नेतृत्व में होली डोला बुधवार को शहर में निकलेगा। इस डोले के निकलने पर समूचे शहर में होली का रंग छा जाएगा। डोला दोपहर 2:00 बजे विश्राम घाट से निकलेगा। जिसमें मुख्य अतिथि माथुर चतुर्वेद परिषद के मुख्य संरक्षक एवं अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश पाठक होंगे। डोले में चतुर्वेद समाज की परंपरागत होली की तान और राधा कृष्ण की झांकियां निकलेंगी। परिषद के अध्यक्ष दिनेश पाठक, उपाध्यक्ष राकेश तिवारी एडवोकेट, अरविंद चतुर्वेदी और महामंत्री योगेंद्र चतुर्वेदी ने सभी धर्म प्रेमी लोगों से इसमें भाग लेने की अपील की है। उधर इस डोले के लिए जिम्मेदारी बांट दी गई है। महामंत्री योगेन्द्र चतुर्वेदी ने बताया कि युवा समिति को चार टीमों में बांटा कर जिम्मेदारियां दी गई हैं। योगेंद्र चतुर्वेदी ने बताया कि डोला विश्राम घाट से प्रारंभ होकर छत्ता बाज़ार, होली गेट, कोतवाली रोड, घिया मंडी, चौक बाज़ार होते हुए विश्राम घाट पर संपन्न होगा। डोले में इस बार श्री राधा कृष्ण के स्वरूप की झांकी, युवाओं की टोलियां, रसिया मंडल, संत समाज और धार्मिक झांकियां होंगी। मेले की व्यवस्थाओं हेतु विभिन्न समितियों का गठन किया।
दाऊजी का हुरंगा एक प्रसिद्ध उत्सव है, जो बल्देव, मथुरा, उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध दाऊजी मंदिर में आयोजित होता है। यह उत्सव होली के बाद मनाया जाता है। यहाँ होली खेलने वाले पुरुष हुरियारे तथा महिलाएँ हुरियारिन कहीं जाती हैं।
सब जग होरी, या बृज होरी' बृज की होली के लिए कहावत बहुत प्रचलित है। इसका अर्थ है कि पूरे जग में मनाई जाने वाली होली में इतना रस नहीं है जितना केवल बृज की होली खेलने में आनंद है। यह बात कई मायनों में बृज की होली पर सटीक भी बैठती है। गांव जाब में जाब का हुरंगा भी देखने लायक होता है। मगर, यह सब होली के बाद होता है। इस बार यह 11 मार्च को है। गांव बठैन, गिडोह के हुरंगा के साथ होली का उत्सव समाप्त होता है। यनी 12 मार्च को बृज की होली इस बार खत्म हो जाएगी।